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लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद | शाही शायरी
lag ja tu mere sina se darwaza ko kar band

ग़ज़ल

लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद

इंशा अल्लाह ख़ान

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लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद
दे खोल क़बा अपनी की बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर बंद

अफ़्सून-ए-निगह से तिरी ऐ साक़ी-ए-बद-मस्त
शीशे में हुई मिस्ल-ए-परी अपनी नज़र-बंद

मकड़ाते हुए फिरते हैं हम कूचे में उस के
क्या कीजिए दरवाज़ा इधर बंद उधर बंद

या शाह-ए-नजफ़ नाम इशारे में तिरा लूँ
हो जाए दम-ए-नज़अ ज़बाँ मेरे अगर बंद

आवे वो अगर यार-ए-सफ़र-कर्दा तो 'इंशा'
मैं दौड़ के किस लुत्फ़ से खुलवाऊँ क़मर-बंद