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लफ़्ज़ों में कैसा रंग-ए-मआ'नी दिखाई दे | शाही शायरी
lafzon mein kaisa rang-e-maani dikhai de

ग़ज़ल

लफ़्ज़ों में कैसा रंग-ए-मआ'नी दिखाई दे

मुख़तार शमीम

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लफ़्ज़ों में कैसा रंग-ए-मआ'नी दिखाई दे
मेरे क़लम में आज रवानी दिखाई दे

जैसे हो सत्ह-ए-ख़्वाब पे इक बे-सुतूँ मकाँ
आलम तमाम दोस्तो फ़ानी दिखाई दे

ये दाग़ दाग़ अपना दिल-ए-ग़म नसीब था
यारो निगार-ख़ाना-ए-मानी दिखाई दे

तुम तल्ख़ ज़िंदगी के हक़ाएक़ से बे-ख़बर
तुम को हयात क्यूँ न सुहानी दिखाई दे

वो मुंजमिद है बर्फ़ की मानिंद ऐ 'शमीम'
बातों में जिस की शो'ला-बयानी दिखाई दे