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लफ़्ज़ यूँ ख़ामुशी से लड़ते हैं | शाही शायरी
lafz yun KHamushi se laDte hain

ग़ज़ल

लफ़्ज़ यूँ ख़ामुशी से लड़ते हैं

अनीस अब्र

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लफ़्ज़ यूँ ख़ामुशी से लड़ते हैं
जिस तरह ग़म हँसी से लड़ते हैं

जानवर जानवर से लड़ता है
आदमी आदमी से लड़ते हैं

मौत की आरज़ू में दीवाने
उम्र-भर ज़िंदगी से लड़ते हैं

जिस से है दोस्ती का हुक्म हमें
हम भी पागल उसी से लड़ते हैं

दूसरों से कभी नहीं लड़ते
लोग जो भी ख़ुदी से लड़ते हैं

ये अँधेरों के हुक्मराँ सारे
आज भी रौशनी से लड़ते हैं

जो अना के मरीज़ होते हैं
हर नए दिन किसी से लड़ते हैं

और भी लोग जब हैं बस्ती में
आप क्यूँ कर हमी से लड़ते हैं

उन को मज़दूर कहना ठीक नहीं
लोग जो मुफ़्लिसी से लड़ते हैं

'अब्र' बे-कार लोग पूछते हैं
आप भी क्या किसी से लड़ते हैं