लफ़्ज़ नागिन की तरह डसते हैं गोयाई में
ख़ामुशी ज़हर मिला देती है तन्हाई में
दिल की बातों को ज़बाँ पर नहीं आने देते
कितनी ज़ंजीरें नज़र आती हैं यकजाई में
ठहरे पानी में गिरा संग रवानी कोई
चाहिए ताज़ा हुआ रूह की गहराई में
क्या नज़र आएगा मौसम के नशे में तुझ को
कितने पत्ते हैं कि उड़ जाते हैं पुर्वाई में
शब से पहले ही कोई चाँद निकालो वर्ना
दिल भी निकलेगा अँधेरों की पज़ीराई में
खुल गई आँख तो ख़ौफ़ आने लगा है ख़ुद से
ग़म न हो जाएँ कहीं अपनी ही पहनाई में
किस के नज़ारे की ख़्वाहिश में गिरफ़्तार हुए
ज़ख़्म आँखों के मिले दिल की मसीहाई में
डूब कर फिर कोई उभरा न सफ़ीना ग़म का
कितने तूफ़ाँ हैं तिरे जिस्म की रा'नाई में
मुझ से पूछो कि बयाबान-ए-सफ़र कैसा है
उम्र गुज़री है मिरी बादिया-पैमाई में
हम भी मर जाएँगे जीने की हवस में आख़िर
काम आएँगे उसी मा'रका-आराई में
हँसने वालों में कई अपने भी शामिल थे 'नदीम'
शक्ल पहचानी गई अपनी भी रुस्वाई में

ग़ज़ल
लफ़्ज़ नागिन की तरह डसते हैं गोयाई में
सलाहुद्दीन नदीम