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लफ़्ज़ आते हैं और जाते हैं | शाही शायरी
lafz aate hain aur jate hain

ग़ज़ल

लफ़्ज़ आते हैं और जाते हैं

साजिद प्रेमी

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लफ़्ज़ आते हैं और जाते हैं
फूल होंटों के थरथराते हैं

फूल ही फूल याद आते हैं
आप जब जब भी मुस्कुराते हैं

आप जा कर हवा से कह दीजे
फूल-पत्ते भी गुनगुनाते हैं

धूप बैठी रही मुंडेरों पर
और कुछ पंछी चहचहाते हैं

मुस्कुराहट खिली है चेहरे पर
अश्क आँखों में झिलमिलाते हैं

उन निगाहों के लक्ष्य पर मैं हूँ
ज़ख़्म ले कर के तीर आते हैं

ऐसे तैराक हम नहीं 'साजिद'
ख़ौफ़ गहराइयों से खाते हैं