लड़कपन में ये ज़िद है जानी तुम्हारी
अभी देखनी है जवानी तुम्हारी
कहा मैं ने ठहरो तो बोले ये हँस कर
कभी फिर सुनेंगे कहानी तुम्हारी
निसार उन के जाएँ जो सच जाने उस को
फ़साना हमारा ज़बानी तुम्हारी
बड़ी ख़िदमतें कीं अब आज़ाद कर दो
बहुत देख ली मेहरबानी तुम्हारी
छुपाऊँ न किस तरह से जाँ बदन में
मिरी जान ये है निशानी तुम्हारी
बहुत साफ़ हैं गालियाँ वाह-वा है
सुनी बारहा ख़ुश-बयानी तुम्हारी
मुक़र्रर बला आने वाली है कोई
नहीं बे-सबब मेहरबानी तुम्हारी
'नसीम' अब तो घबरा गया दिल हमारा
सुने कौन पहरों कहानी तुम्हारी

ग़ज़ल
लड़कपन में ये ज़िद है जानी तुम्हारी
नसीम देहलवी