लड़कपन की हसीं दिलकश डगर का
हमारा प्यार था पहली नज़र का
सबब वो शाम का वो ही सहर का
भरोसा क्या करें ऐसी नज़र का
सिवा मेरे दिखे हैं ऐब सब के
बड़ा धोखा रहा मेरी नज़र का
तिरी बस ख़ुशबुएँ रख दीं हवा पर
पता लिक्खा नहीं तेरे नगर का
ग़ज़ल
लड़कपन की हसीं दिलकश डगर का
सुदेश कुमार मेहर