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लबों से आश्नाई दे रहा है | शाही शायरी
labon se aashnai de raha hai

ग़ज़ल

लबों से आश्नाई दे रहा है

यशब तमन्ना

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लबों से आश्नाई दे रहा है
वो लज़्ज़त इंतिहाई दे रहा है

मोहब्बत भी हुई कार-ए-मशक़्क़त
बदन थक कर दुहाई दे रहा है

चुराता है बदन मुझ से निगाहें
मुझे दिल भी सफ़ाई दे रहा है

कोई भर देगा अपनी क़ुर्बतों से
कोई ज़ख़्म-ए-जुदाई दे रहा है

कोई तो है जो इतनी सर्दियों में
बदन जैसी रज़ाई दे रहा है

कोई मुझ को 'यशब' अपनी रज़ा से
ख़ज़ानों तक रसाई दे रहा है