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लब पे झूटे तराने होते हैं | शाही शायरी
lab pe jhuTe tarane hote hain

ग़ज़ल

लब पे झूटे तराने होते हैं

फ़िगार उन्नावी

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लब पे झूटे तराने होते हैं
क्या करें ग़म छुपाने होते हैं

वो भी कैसे ज़माने होते हैं
जब क़फ़स आशियाने होते हैं

यूँ ही आती नहीं ख़ुशी की बहार
सैकड़ों ग़म उठाने होते हैं

ज़िंदगी का कुछ ए'तिबार नहीं
मौत के सौ बहाने होते हैं

इस तरह बैठता नहीं छुप कर
जिस को जल्वे दिखाने होते हैं