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लब पे इक नाम जब आता है तो रो लेते हैं | शाही शायरी
lab pe ek nam jab aata hai to ro lete hain

ग़ज़ल

लब पे इक नाम जब आता है तो रो लेते हैं

रईस अख़तर

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लब पे इक नाम जब आता है तो रो लेते हैं
कोई जी-भर के रुलाता है तो रो लेते हैं

चाँदनी-रात की महकी हुई तन्हाई में
साज़-ए-ग़म पर कोई गाता है तो रो लेते हैं

नूर-ओ-निकहत की फ़ज़ाओं का दिल-आवेज़ समाँ
दिल में जब आग लगाता है तो रो लेते हैं

आज भी हादसा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत की क़सम
प्यार जब कोई बढ़ाता है तो रो लेते हैं

आरज़ूओं की उजाड़ी हुई महफ़िल में कहीं
शम-ए-दिल कोई जलाता है तो रो लेते हैं

कोई अंजान मसीहा कोई ग़म का साथी
क़िस्सा-ए-दर्द सुनाता है तो रो लेते हैं

दिल की गलियों से तसव्वुर की हसीं वादी से
जब कोई रूठ के जाता है तो रो लेते हैं

जाने किस ज़ख़्म-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
प्यार से कोई बुलाता है तो रो लेते हैं

अब भी उम्मीद के सोए हुए ज़ख़्मों को 'रईस'
जब कोई आ के जगाता है तो रो लेते हैं