EN اردو
लब पे इक नाम हमेशा की तरह | शाही शायरी
lab pe ek nam hamesha ki tarah

ग़ज़ल

लब पे इक नाम हमेशा की तरह

महशर इनायती

;

लब पे इक नाम हमेशा की तरह
और क्या काम हमेशा की तरह

दिन अगर कोई गुज़ारे भी तो क्या
फिर वही शाम हमेशा की तरह

देख कर उन को मिरे चेहरे का रंग
बर-सर-ए-आम हमेशा की तरह

कूचा-गर्दों पे ही पाबंदी है
जल्वा-ए-बाम हमेशा की तरह

दिल वही शहर-ए-तमन्ना ब-कनार
और नाकाम हमेशा की तरह

हाल क्या अपना बताए 'महशर'
वक़्फ़-ए-आलाम हमेशा की तरह