लब पर जो मिरे आह-ए-ग़म-आलूद नहीं है
इज़हार-ए-मोहब्बत मुझे मक़्सूद नहीं है
हम जैसे फ़क़ीरों को तो यूँ भी न कहे वो
फिर आइयो कुछ इस घड़ी मौजूद नहीं है
कहता हूँ मैं ये गब्र ओ मुसलमान के मुँह पर
वो अब्द नहीं जिस का तू माबूद नहीं है
नरमाए है किस तरह से इस आहन-ए-दिल को
ये आह अगर नग़्मा-ए-दाऊद यहीं है
फिरते हैं कई क़ैस से हैरान ओ परेशान
इस इश्क़ की सरकार में बहबूद नहीं है
तासीर मदद कीजियो अब सीने में अपने
इस नाले से इक आह भी अफ़्ज़ूद नहीं है
ख़ूबी-ए-अयाज़ आफी नज़र आ गई होती
अफ़सोस तिरे अहद में महमूद नहीं है
इस आतिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा दहर में 'जोशिश'
देखा तो कहीं आतिश-ए-बे-दूद नहीं है
ग़ज़ल
लब पर जो मिरे आह-ए-ग़म-आलूद नहीं है
जोशिश अज़ीमाबादी