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लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ | शाही शायरी
lazim hai apne aap ki imdad kuchh karun

ग़ज़ल

लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ

जौन एलिया

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लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ
सीने में वो ख़ला है कि ईजाद कुछ करूँ

हर लम्हा अपने आप में पाता हूँ कुछ कमी
हर लम्हा अपने आप में ईज़ाद कुछ करूँ

रूकार से तो अपनी मैं लगता हूँ पाएदार
बुनियाद रह गई प-ए-बुनियाद कुछ करूँ

तारी हुआ है लम्हा-ए-मौजूद इस तरह
कुछ भी न याद आए अगर याद कुछ करूँ

मौसम का मुझ से कोई तक़ाज़ा है दम-ब-दम
बे-सिलसिला नहीं नफ़स-ए-बाद कुछ करूँ