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लावे ख़ातिर में हमारे दिल को वो मग़रूर क्या | शाही शायरी
lawe KHatir mein hamare dil ko wo maghrur kya

ग़ज़ल

लावे ख़ातिर में हमारे दिल को वो मग़रूर क्या

नज़ीर अकबराबादी

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लावे ख़ातिर में हमारे दिल को वो मग़रूर क्या
जिस के आगे महर क्या मह क्या परी क्या हूर क्या

दिल नया हम ने लगाया है बता दो मेहरबाँ
उस की है रह क्या रविश क्या रस्म क्या दस्तूर क्या

याद हों अय्यारियाँ जिस को बहुत हम क्या करें
उस के आगे मक्र क्या जुल क्या फ़ुसूँ क्या ज़ोर क्या

यूँ कहा हम लेंगे बोसा अब तो छू कर ज़ुल्फ़ को
बोला मुँह क्या दस्त-गह क्या ताब क्या मक़्दूर क्या

हम को चाहत एक सी है उस परी-रू से 'नज़ीर'
रू-ब-रू क्या दुर क़फ़ा क्या मुत्तसिल क्या दूर क्या