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लाख ख़ुर्शेद सर-ए-बाम अगर हैं तो रहें | शाही शायरी
lakh KHurshed sar-e-baam agar hain to rahen

ग़ज़ल

लाख ख़ुर्शेद सर-ए-बाम अगर हैं तो रहें

शहरयार

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लाख ख़ुर्शेद सर-ए-बाम अगर हैं तो रहें
हम कोई मोम नहीं हैं कि पिघल जाएँगे

हर गली-कूचे में रुस्वा हुए जिन की ख़ातिर
क्या ख़बर थी कि वही लोग बदल जाएँगे

उन के पीछे न चलो उन की तमन्ना न करो
साए फिर साए हैं कुछ देर में ढल जाएँगे

क़ाफ़िले नींदों के आए हैं उन्हें ठहरा लो
वर्ना ये दूर बहुत दूर निकल जाएँगे