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लाख ग़म सीने से लिपटे रहे नागन की तरह | शाही शायरी
lakh gham sine se lipTe rahe nagan ki tarah

ग़ज़ल

लाख ग़म सीने से लिपटे रहे नागन की तरह

कृष्ण बिहारी नूर

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लाख ग़म सीने से लिपटे रहे नागन की तरह
प्यार सच्चा था महकता रहा चंदन की तरह

तुझ को पहचान लिया है तुझे पा भी लूँगा
इक जनम और मिले गर इसी जीवन की तरह

अब कोई कैसे पहुँच पाएगा तेरे ग़म तक
मुस्कुराहट की रिदा डाल दी चिलमन की तरह

कोई तहरीर नहीं है जिसे पढ़ ले कोई
ज़िंदगी हो गई बे-नाम सी उलझन की तरह

जैसे धरती की किसी शय से तअल्लुक़ ही नहीं
हो गया प्यार तिरा भी तिरे दामन की तरह

शाम जब रात की महफ़िल में क़दम रखती है
भरती है माँग में सिंदूर सुहागन की तरह

मुस्कुराते हो मगर सोच लो इतना ऐ 'नूर'
सूद लेती मसर्रत भी महाजन की तरह