EN اردو
क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की | शाही शायरी
kyun ye hasrat thi dil lagane ki

ग़ज़ल

क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की

सदा अम्बालवी

;

क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की
थी न हिम्मत अगर निभाने की

माँग कर हम से ले लिया होता
क्या ज़रूरत थी दिल चुराने की

कौन आएगा भूल कर रस्ता
दिल को क्यूँ ज़िद है घर सजाने की

रंग तुम भी बदलते हो पल पल
ख़ूब तस्वीर हो ज़माने की

क्या मज़ा उन से रूठने का सदा
जिन को फ़ुर्सत नहीं मनाने की