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क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल | शाही शायरी
kyun ujaD jati hai dil ki mahfil

ग़ज़ल

क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
ये दिया कौन बुझा देता है

वो नहीं देखते साहिल की तरफ़
जिन को तूफ़ान सदा देता है

शोर दिन को नहीं सोने देता
शब को सन्नाटा जगा देता है

तुम तो कहते थे कि रुत का जादू
दश्त में फूल खिला देता है

उस की मर्ज़ी है वो हर राहत में
रंज थोड़ा सा मिला देता है

दुख तो देता है तिरा ग़म लेकिन
दिल को इक्सीर बना देता है

तुझ से पहले दिल-ए-बेताब मुझे
तेरी आमद का पता देता है

जान-ए-मन एक हसीं चेहरा भी
सारी महफ़िल को सजा देता है

अब तसल्ली भी अज़िय्यत है मुझे
अब दिलासा भी रुला देता है