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क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत | शाही शायरी
kyun saba ki na ho raftar ghalat

ग़ज़ल

क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत

बाक़ी सिद्दीक़ी

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क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत
गुल ग़लत ग़ुंचे ग़लत ख़ार ग़लत

हम-नवाओं की नहीं कोई कमी
बात कीजे सर-ए-बाज़ार ग़लत

वक़्त उलट दे न बिसात-ए-हस्ती
चाल हम चलते हैं हर बार ग़लत

दिल के सौदे में कोई सूद नहीं
जिंस है ख़ाम-ए-ख़रीदार ग़लत

हर तरफ़ आग लगी है 'बाक़ी'
मशवरा देती है दीवार ग़लत