क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत
गुल ग़लत ग़ुंचे ग़लत ख़ार ग़लत
हम-नवाओं की नहीं कोई कमी
बात कीजे सर-ए-बाज़ार ग़लत
वक़्त उलट दे न बिसात-ए-हस्ती
चाल हम चलते हैं हर बार ग़लत
दिल के सौदे में कोई सूद नहीं
जिंस है ख़ाम-ए-ख़रीदार ग़लत
हर तरफ़ आग लगी है 'बाक़ी'
मशवरा देती है दीवार ग़लत
ग़ज़ल
क्यूँ सबा की न हो रफ़्तार ग़लत
बाक़ी सिद्दीक़ी