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क्यूँ सा रहता है क्या सा रहता है | शाही शायरी
kyun sa rahta hai kya sa rahta hai

ग़ज़ल

क्यूँ सा रहता है क्या सा रहता है

मीर अहमद नवेद

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क्यूँ सा रहता है क्या सा रहता है
दिल जो खोया हुआ सा रहता है

एक सनाहटे का सीने में
भागना दौड़ना सा रहता है

मैं कहीं आऊँ मैं कहीं जाऊँ
वक़्त जैसे रुका सा रहता है

सुब्ह का दिल कहीं नहीं लगता
शाम का दम घुटा सा रहता है

दिल के आने का दिल के जाने का
एक धड़का लगा सा रहता है

ऐ ख़लिश बोल क्या यही है ख़ुदा
ये जो दिल में ख़ला सा रहता है

कुन है दरकार उस के होने को
काम वो जो ज़रा सा रहता है