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क्यूँ मिली थी हयात याद करो | शाही शायरी
kyun mili thi hayat yaad karo

ग़ज़ल

क्यूँ मिली थी हयात याद करो

नौशाद अली

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क्यूँ मिली थी हयात याद करो
याद रखने की बात याद करो

कौन छूटा कहाँ कहाँ छूटा
राह के हादसात याद करो

अभी कल तक वफ़ा की राहों में
तुम भी थे मेरे साथ याद करो

मुझ से क्या पूछते हो हाल मिरा
ख़ुद कोई वारदात याद करो

जिस दम आँखें मिली थी आँखों से
थी कहाँ काएनात याद करो

भूल आए जबीं को रख के कहाँ
कहाँ पहुँचे थे रात याद करो

दिल को आईना-गर बनाना है
आईने के सिफ़ात याद करो

निकलेगा चाँद उन्हीं अंधेरों से
उन से मिलने की रात याद करो

छोड़ो जाने दो जो हुआ सो हुआ
आज क्यूँ कल की बात याद करो

करना है शाइरी अगर 'नौशाद'
'मीर' का कुल्लियात याद करो