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क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है | शाही शायरी
kyun ki kahiye ki ada-bandi hai

ग़ज़ल

क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है
शाएरी क्या है हवा-बंदी है

ख़म-ए-गेसू को छुआ था किस के
शब से गुलशन में सबा-बंदी है

क्यूँकि हम ख़ून न रोएँ शब-ए-ईद
यार मशग़ूल-ए-हिना-ए-बंदी है

दर पे बैठे हैं तिरे बे-ज़ंजीर
ये अजब तरह की पाबंदी है

नहीं पढ़ता मिरा नुस्ख़ा अत्तार
बस-कि मसरूफ़-ए-दवा-बंदी है

शोख़ मज़मूँ से हज़र करते हैं
शेर में जिन के हया-बंदी है

मुज़्दा ऐ हसरत-ए-नज़्ज़ारा कि वाँ
गिर्द चिलमन के रिदा-बंदी है

हर नफ़स ताज़ा ग़ज़ल कहते हैं
हर नफ़स ताज़ा नवा-बंदी है

'मुसहफ़ी' शेर में तो याद हमें
ज़ोर-सूरत की अदा-बंदी है