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क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़ | शाही शायरी
kyun dekhiye na husn-e-KHuda-dad ki taraf

ग़ज़ल

क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़

इम्दाद इमाम असर

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क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़
लाज़िम नज़र है गुलशन-ए-ईजाद की तरफ़

पाए जो तेरे गोशा-ए-दस्तार की हवा
कुमरी उड़ी न तुर्रा-ए-शमशाद की तरफ़

बे-अस्ल ऐ फ़लक नज़र आता है तू मुझे
करता हूँ ग़ौर जब तिरी बुनियाद की तरफ़

गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह
गुलचीं ओ बाग़बाँ भी हैं सय्याद की तरफ़

मज़लूम हूँ मगर नहीं मिलता कोई गवाह
हैं अहल-ए-हश्र इस सितम-ईजाद की तरफ़

नादाँ कहीं पनाह नहीं मौत से तुझे
क्या देखता है क़िला-ए-फ़ौलाद की तरफ़

हम-जिंस को ज़रूर है हम-जिंस का ख़याल
रग़बत न हो बशर को परी-ज़ाद की तरफ़

मज़मूँ कमर का हाथ न आया जो दहर में
जाना पड़ा मुझे अदम-आबाद की तरफ़

तकलीफ़ जू-ए-शीर की दे कर जो थी ख़जिल
शीरीं न देख सकती थी फ़रहाद की तरफ़

दीवानगी का ज़ोर तमाशा है ऐ परी
फ़स्साद की निगाह है हद्दाद की तरफ़

गर्दन झुकाए शौक़-ए-शहादत में हूँ रवाँ
दिल ले चला है कूचा-ए-जल्लाद की तरफ़

उमीद-वार चश्म-ए-इनायत का है ग़रीब
देखो तो इक नज़र दिल-ए-नाशाद की तरफ़

नासेह अगर सितम न सहें हम तो क्या करें
दिल दौड़ता है यार की बे-दाद की तरफ़

बुलबुल समझ रही है कि गुलहा-ए-ख़ंदा-रू
रखते हैं कान नाला-ओ-फ़रियाद की तरफ़

फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से अपनी तबीअत है बे-नियाज़
रू-ए-तलब कभी न हुआ दाद की तरफ़

वाइज़ से सुन के क़ामत-ए-तौबा की ख़ूबियाँ
दौड़ा ख़याल इक क़द-ए-आज़ाद की तरफ़

भूले हुए हैं सारे ज़माने की नेमतें
मैलान-ए-दिल जिन्हें है तेरी याद की तरफ़

या शाह-ए-जिन्न-ओ-इंस 'असर' पर भी इक नज़र
रखता है आँख आप की इमदाद की तरफ़