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क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है | शाही शायरी
kyun chhupate ho kidhar jaana hai

ग़ज़ल

क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है

बलवान सिंह आज़र

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क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
दश्त से कह दो कि घर जाना है

मुझ में भी पहले उठेंगे तूफ़ाँ
फिर ख़मोशी को पसर जाना है

कोई कहता है कि मैं मलबा हूँ
किसी ने मुझ को खंडर जाना है

ख़ाक तो ख़ाक पे आ बैठेगी
ख़ाक को उड़ के किधर जाना है

उस की नादानी तो देखो 'आज़र'
फिर से दीवार को दर जाना है