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क्या यही है जिस पे हम देते हैं जाँ | शाही शायरी
kya yahi hai jis pe hum dete hain jaan

ग़ज़ल

क्या यही है जिस पे हम देते हैं जाँ

इस्माइल मेरठी

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क्या यही है जिस पे हम देते हैं जाँ
या कोई दुनिया-ए-फ़ानी और है

यूँ तो हर इंसान गोया है मगर
शेवा-ए-शेवा-बयानी और है

चल रही है जिस से जिस्मानी मशीन
कोई पोशीदा कमानी और है

दिल ने पैदा की कहाँ से ये तरंग
कोई तहरीक-ए-निहानी और है

ग़ैर समझा है किसे ऐ हम-नशीं
मेरे दिल में बद-गुमानी और है

तुम ने कब देखा है बे-रंगी का रंग
बे निशानी की निशानी और है