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क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है | शाही शायरी
kya tamasha dekhiye tahsil-e-la-hasil mein hai

ग़ज़ल

क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है

सरवर आलम राज़

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क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है
एक दुनिया का मज़ा दुनिया-ए-आब-ओ-गिल में है

देख ये जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा तो नहीं
कल जो तेरे दिल में था वो आज मेरे दिल में है

मैं भला किस से कहूँ क्या क्या कहूँ कैसे कहूँ
मौत से पहले ही मर जाने की ख़्वाहिश दिल में है

मौज ओ शोरिश इंक़लाब ओ इज़्तिराब ओ रुस्त-ओ-ख़ेज़
है मज़ा साहिल में कब जो दूरी-ए-साहिल में है

झाँक कर दिल में ज़रा ये तो बता दीजे हुज़ूर
मेरी क़िस्मत का सितारा कौन सी मंज़िल में है

मुझ को भाता ही नहीं इक आँख हुस्न-ए-काएनात
हाँ मगर वो जो तिरे रुख़्सार के इक तिल में है

कर दिया बेगाना-ए-ग़म-हा-दुनिया इश्क़ ने
मुझ को आसानी यही तो अपनी इस मुश्किल में है

तेरा माज़ी हाल से दस्त-ओ-गरेबाँ गिर रहा
मैं बताता हूँ जो 'सरवर' तेरे मुस्तक़बिल में है