क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
जिन कूँ नरख जले हैं सब मनहरन ममोला
बर में ख़याल के भी क्यूँकर के आ सके दिल
नाज़ुक है जान सेती तेरा बदन ममोला
जो इक निगह करो तुम करते हो काम सो तुम
सीखे कहाँ सीं हो तुम ये मक्र-ओ-फ़न ममोला
आज़ाद सब जगत के आ कर ग़ुलाम होवें
जब बूदली बनावे अपना बरन ममोला
क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचा
करता हूँ देख तुम कूँ सैर-ए-चमन ममोला
हर रात शम्अ के जूँ जलती है जान मेरी
जब सीं लगी है तुम सीं दिल की लगन ममोला
ग़ज़ल
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
आबरू शाह मुबारक