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क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला | शाही शायरी
kya puchhte ho mujhko mohabbat mein kya mila

ग़ज़ल

क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला

रज़ा जौनपुरी

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क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला
दोनों-जहाँ का दर्द ब-नाम-ए-ख़ुदा मिला

शायद यही है हासिल-ए-पायान-ए-आरज़ू
अपना पता नहीं है जो उन का पता मिला

अफ़्साना-ए-हयात की तकमील हो गई
जब उन के सिलसिले से मिरा सिलसिला मिला

जब से नहीं वो नग़्मा-ज़न-ए-साज़-ए-ज़िंदगी
इक एक तार दिल का मुझे बे-सदा मिला

तुम क्या मिले मिज़ा के ज़िया-बार कू-ब-कू
पर्दे में शब के सुब्ह का रू-ए-सफ़ा मिला

हर आरज़ू की एक वही जान-ए-आरज़ू
हर मुद्दआ' का एक वही मुद्दआ' मिला

वज्ह-ए-दवाम फ़ितरत-ए-ग़म ही नहीं फ़क़त
दिल भी अज़ल-तराज़ अबद-आश्ना मिला

कैसी बहार मौजा-ए-कैफ़-ओ-निशात क्या
पहलु-ए-गुल न दामन-ए-बाद-ए-सबा मिला

जन्नत चमक चमक उठी रंग-ओ-जमाल की
किस गुल की आरज़ू का शरफ़ ऐ 'रज़ा' मिला