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क्या पता क्या था उधर और क्या न था | शाही शायरी
kya pata kya tha udhar aur kya na tha

ग़ज़ल

क्या पता क्या था उधर और क्या न था

साबिर अदीब

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क्या पता क्या था उधर और क्या न था
क़द मिरा दीवार से ऊँचा न था

ज़ेहन मुर्दा जिस्म बे-हिस बे-लिबास
मैं ने वो देखा है जो देखा न था

भागता फिरता हूँ अपने-आप से
ऐसा भी होगा कभी सोचा न था

मल्गजे बिगड़े से चेहरे हर तरफ़
ज़िंदगी पहले तुझे देखा न था

मसअले कुछ लिख गया दीवार पर
एक दीवाना जो दीवाना न था

उस की लाखों में यही पहचान थी
क़ब्र पर उस की कोई कतबा न था

जिस ने जो माँगा उसे वो दे दिया
ऐ ख़ुदा क्या मैं तिरा बंदा न था