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क्या परिंदे लौट कर आए नहीं | शाही शायरी
kya parinde lauT kar aae nahin

ग़ज़ल

क्या परिंदे लौट कर आए नहीं

साहिल अहमद

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क्या परिंदे लौट कर आए नहीं
वो किसी आवाज़ पर आए नहीं

शाम से ही फ़िक्र गहरी हो गई
शहर से जब लोग घर आए नहीं

सूने सूने ही खड़े हैं सब शजर
अब तलक तो कुछ समर आए नहीं

अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
फिर दोबारा लौट कर आए नहीं

उड़ गए ताइर बुलाता मैं रहा
वो मिरी दीवार पर आए नहीं