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क्या मिला हम को तेरी यारी में | शाही शायरी
kya mila hum ko teri yari mein

ग़ज़ल

क्या मिला हम को तेरी यारी में

इंशा अल्लाह ख़ान

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क्या मिला हम को तेरी यारी में
रहे अब तक उमीद-वारी में

हाथ गहरा लगा कू-ए-क़ातिल
ज़ोर-ए-लज़्ज़त है ज़ख़्म-ए-कारी में

दिल जो बे-ख़ुद हुआ सबा लाई
किस की बू निगहत-ए-बहारी में

टुक उधर देख तू भला ऐ चश्म
फ़ाएदा ऐसी अश्क-बारी में

चट लगा देते हैं मिरे आँसू
सिल्क-ए-गौहर के आब-दारी में

रूठ कर उस से मैं जो कल भागा
ना-गहाँ दिल की बे-क़रारी में

आ लिया उस ने दौड़ कर मुझ को
ताक के ओछल एक क्यारी में

यूँ लगा कहने बस दिवाना न बन
पावँ रख अपना होशियारी में

कब तलक मैं भला रहूँ शब-ओ-रोज़
तेरी ऐसी मज़ाज-दारी में

है समाया हुआ जो लड़का-पन
आप की वज़्अ' प्यारी प्यारी में

अपनी बकरी का मुँह चिड़ाते वक़्त
क्या ख़ुश आती है ये तुम्हारी ''में''

बंदा-ए-बू-तुराब है 'इंशा'
शक नहीं उस की ख़ाकसारी में