क्या मिला हम को तेरी यारी में
रहे अब तक उमीद-वारी में
हाथ गहरा लगा कू-ए-क़ातिल
ज़ोर-ए-लज़्ज़त है ज़ख़्म-ए-कारी में
दिल जो बे-ख़ुद हुआ सबा लाई
किस की बू निगहत-ए-बहारी में
टुक उधर देख तू भला ऐ चश्म
फ़ाएदा ऐसी अश्क-बारी में
चट लगा देते हैं मिरे आँसू
सिल्क-ए-गौहर के आब-दारी में
रूठ कर उस से मैं जो कल भागा
ना-गहाँ दिल की बे-क़रारी में
आ लिया उस ने दौड़ कर मुझ को
ताक के ओछल एक क्यारी में
यूँ लगा कहने बस दिवाना न बन
पावँ रख अपना होशियारी में
कब तलक मैं भला रहूँ शब-ओ-रोज़
तेरी ऐसी मज़ाज-दारी में
है समाया हुआ जो लड़का-पन
आप की वज़्अ' प्यारी प्यारी में
अपनी बकरी का मुँह चिड़ाते वक़्त
क्या ख़ुश आती है ये तुम्हारी ''में''
बंदा-ए-बू-तुराब है 'इंशा'
शक नहीं उस की ख़ाकसारी में
ग़ज़ल
क्या मिला हम को तेरी यारी में
इंशा अल्लाह ख़ान