क्या लड़के दिल्ली के हैं अय्यार और नट-खट
दिल लें हैं यूँ कि हरगिज़ होती नहीं है आहट
हम आशिक़ों को मरते क्या देर कुछ लगे है
चट जिन ने दिल पे खाई वो हो गया है चट-पट
दिल है जिधर को ऊधर कुछ आग सी लगी थी
उस पहलू हम जो लेटे जल जल गई है करवट
कलियों को तू ने चट चट ऐ बाग़बाँ जो तोड़ा
बुलबुल के दिल जिगर को ज़ालिम लगी है क्या चट
जी ही हटे न मेरा तो उस को क्या करूँ मैं
हर-चंद बैठता हूँ मज्लिस में उस से हट हट
देती है तूल बुलबुल क्या नाला-ओ-फ़ुग़ाँ को
दिल के उलझने से हैं ये आशिक़ों की फट फट
मुर्दे न थे हम ऐसे दरिया पे जब था तकिया
उस घाट गाह ओ बेगह रहने लगा था जमघट
रुक रुक के दिल हमारा बे-ताब क्यूँ न होवे
कसरत से दर्द-ओ-ग़म की रहता है उस पे झुरमुट
शब 'मीर' से मिले हम इक वहम रह गया है
उस के ख़्याल-ए-मू में अब तो गया बहुत लट
ग़ज़ल
क्या लड़के दिल्ली के हैं अय्यार और नट-खट
मीर तक़ी मीर