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क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर | शाही शायरी
kya kya guman na the mujhe apni uDan par

ग़ज़ल

क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर

रहमान ख़ावर

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क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर
बाज़ू जो शल हुए तो गिरा हूँ चटान पर

ख़ुद्दारियों से कौन ये पूछे कि आज तक
कितने अज़ाब हम ने लिए अपनी जान पर

अब के न जाने रुत को नज़र किस की खा गई
इक बार भी पड़ी न धनक आसमान पर

कश्ती में सो गए जो उन्हें ये ख़बर कहाँ
कितना है आज ज़ोर-ए-हवा बादबान पर

ख़ुश-फ़हमियों के दौर से पहले जो थी कभी
वो बरतरी कहाँ है यक़ीं को गुमान पर

इक बे-कराँ ख़ला है निगाहों में हर तरफ़
या'नी ज़मीन पर हैं न हम आसमान पर

'ख़ावर' भी ज़िंदगी से नबर्द-आज़मा हुआ
क्या शख़्स था जो खेल गया अपनी जान पर