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क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा | शाही शायरी
kya koi yaad tere dil ko dukhati hai hawa

ग़ज़ल

क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा

राशिद अनवर राशिद

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क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा
सर्द सन्नाटे में क्यूँ शोर मचाती है हवा

ये ख़बर दी है परिंदों ने चलो सुनते हैं
झील के पास कोई गीत सुनाती है हवा

बाग़ मुरझाए चमन रोया हुए दश्त उदास
सब को मायूस कहाँ छोड़ के जाती है हवा

ख़ुश्बूओं आओ ठहर जाओ हमारे आँगन
फिर इशारों में बहारों को बुलाती है हवा

जो गया लौट के आया ही नहीं सरहद से
अब किसे दश्त में आवाज़ लगाती है हवा

झुण्ड में लौटने लगते हैं सुनहरे पंछी
सूखती शाख़ों पे जब फूल खिलाती है हवा

ख़ैर-मक़्दम के लिए बंद दरीचे खोलो
नाज़-ओ-अंदाज़ से किस शान से आती है हवा