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क्या ख़ला आसमान था पहले | शाही शायरी
kya KHala aasman tha pahle

ग़ज़ल

क्या ख़ला आसमान था पहले

विशाल खुल्लर

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क्या ख़ला आसमान था पहले
किस की सूरत पे ध्यान था पहले

दिल जो अब शोर करता रहता है
किस क़दर बे-ज़बान था पहले

तू जिसे कारवाँ समझता है
उस पे मेरा निशान था पहले

जिस जगह रौशनी टपकती है
वाँ हवा का गुमान था पहले

चुप सी क्यूँ लग गई है 'खुल्लर' को
कितना जादू-बयान था पहले