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क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे | शाही शायरी
kya KHabar thi munharif ahl-e-jahan ho jaenge

ग़ज़ल

क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे

दानिश अलीगढ़ी

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क्या ख़बर थी मुन्हरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे
होते होते मेहरबाँ ना-मेहरबाँ हो जाएँगे

मुस्कुरा कर उन का मिलना और बिछड़ना रूठ कर
बस यही दो लफ़्ज़ इक दिन दास्ताँ हो जाएँगे

इश्क़ सादिक़ है तो अपने अज़्म-ए-मंज़िल की क़सम
हर क़दम पर साथ लाखों कारवाँ हो जाएँगे

ये मआल-ए-इश्क़ होगा ये किसे मालूम था
दिल के नग़्मे एक दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ हो जाएँगे

गर तरन्नुम पर ही 'दानिश' मुनहसिर है शाइरी
फिर तो दुनिया भर के शाइर नग़्मा-ख़्वाँ हो जाएँगे