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क्या ख़बर थी कि तिरे साथ ये दुनिया होगी | शाही शायरी
kya KHabar thi ki tere sath ye duniya hogi

ग़ज़ल

क्या ख़बर थी कि तिरे साथ ये दुनिया होगी

अंजुम सिद्दीक़ी

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क्या ख़बर थी कि तिरे साथ ये दुनिया होगी
मेरी जानिब मिरी तक़दीर ही तन्हा होगी

आरज़ू की ये सज़ा है कि ज़माना है ख़िलाफ़
उन से मिलने की ख़ुदा जाने सज़ा क्या होगी

मरमरीं जिस्म का चर्चा लब-ओ-रुख़्सार की बात
मेरी कोई तो ग़ज़ल उन का सरापा होगी

अश्क-ए-ग़म पीने में तकलीफ़ तो होती है मगर
सोचता हूँ कि मोहब्बत तिरी रुस्वा होगी

नामा-बर भी है तरफ़-दार अब उन का 'अंजुम'
मेरे हालात की अब उन को ख़बर क्या होगी