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क्या करें तदबीर-ए-वहशत ऐ दिल-ए-दीवाना हम | शाही शायरी
kya karen tadbir-e-wahshat ai dil-e-diwana hum

ग़ज़ल

क्या करें तदबीर-ए-वहशत ऐ दिल-ए-दीवाना हम

जामी रुदौलवी

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क्या करें तदबीर-ए-वहशत ऐ दिल-ए-दीवाना हम
उस से मिल भी तो नहीं सकते हैं आज़ादाना हम

हम रहें दूरी कश-ए-मए ग़ैर मस्त-ए-अर्ग़वाँ
आज टकरा देंगे हर पैमाने से पैमाना हम

ढूँढ लेगा आप मंज़िल कारवान-ए-ज़िंदगी
ग़ैर का एहसान क्यूँ लें हिम्मत-ए-मर्दाना हम

लब रहे ख़ामोश लेकिन सारी बातें हो गईं
इक नज़र में कह गए अफ़्साना-दर-अफ़्साना हम

जिस तरह इंसाँ को ले डूबे हैं शैख़-ओ-बरहमन
लाओ साग़र में डुबो दें मस्जिद-ओ-बुत-ख़ाना हम

जिस को दुनिया में किसी ने मुँह लगाया ही नहीं
महफ़िल-ए-रिंदाँ में हैं टूटा हुआ पैमाना हम

काश कोई देख ही लेता निगाह-ए-लुत्फ़ से
आए थे महफ़िल में 'जामी' कितने मुश्ताक़ाना हम