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क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं | शाही शायरी
kya kahun us se ki jo baat samajhta hi nahin

ग़ज़ल

क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं

फ़ातिमा हसन

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क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं

हम ने देखा है फ़क़त ख़्वाब खुली आँखों से
ख़्वाब थी वस्ल की वो रात समझता ही नहीं

मैं ने पहुँचाया उसे जीत के हर ख़ाने में
मेरी बाज़ी थी मिरी मात समझता ही नहीं

रात पुर्वाई ने उस को भी जगाया होगा
रात क्यूँ कट न सकी रात समझता ही नहीं

शाएरी का कोई अंदाज़ समझता है इन्हें
वो मोहब्बत की रिवायात समझता ही नहीं