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क्या कहिए क्या रक्खें हैं हम तुझ से यार ख़्वाहिश | शाही शायरी
kya kahiye kya rakkhen hain hum tujhse yar KHwahish

ग़ज़ल

क्या कहिए क्या रक्खें हैं हम तुझ से यार ख़्वाहिश

मीर तक़ी मीर

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क्या कहिए क्या रक्खें हैं हम तुझ से यार ख़्वाहिश
यक जान ओ सद तमन्ना यक दिल हज़ार ख़्वाहिश

ले हाथ में क़फ़स टुक सय्याद चल चमन तक
मुद्दत से है हमें भी सैर-ए-बहार ख़्वाहिश

ने कुछ गुनह है दिल का ने जुर्म-ए-चश्म इस में
रखती है हम को इतना बे-इख़्तियार ख़्वाहिश

हालाँकि उम्र सारी मायूस गुज़री तिस पर
क्या क्या रखें हैं उस के उम्मीद-वार ख़्वाहिश

ग़ैरत से दोस्ती की किस किस से हो जे दुश्मन
रखता है यारी ही की सारा दयार ख़्वाहिश

हम मेहर ओ रज़ क्यूँ कर ख़ाली हों आरज़ू से
शेवा यही तमन्ना फ़न ओ शिआर ख़्वाहिश

उठती है मौज हर यक आग़ोश ही की सूरत
दरिया को है ये किस का बोस ओ कनार ख़्वाहिश

सद रंग जल्वा-गर है हर जादा ग़ैरत गुल
आशिक़ की एक पावे क्यूँ कर क़रार ख़्वाहिश

यक बार बर न आए उस से उम्मीद दिल की
इज़हार करते कब तक यूँ बार बार ख़्वाहिश

करते हैं सब तमन्ना पर 'मीर' जी न इतनी
रक्खेगी मार तुम को पायान-ए-कार ख़्वाहिश