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क्या कहीं मिलता है क्या ख़्वाबों में | शाही शायरी
kya kahin milta hai kya KHwabon mein

ग़ज़ल

क्या कहीं मिलता है क्या ख़्वाबों में

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

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क्या कहीं मिलता है क्या ख़्वाबों में
दिल घिरा रहता है महताबों में

हर तमन्ना-ए-सुकून-ए-साहिल
उलझी उलझी रही सैलाबों में

दिल-ए-इंसाँ की स्याही तौबा
ज़ुल्मतें बस गईं महताबों में

आप के फ़ैज़ से तनवीरें हैं
का'बा-ए-इश्क़ की मेहराबों में

अपना हर ख़्वाब था इक मौज-ए-सुरूर
यूँ हुई उम्र बसर ख़्वाबों में

हुस्न-ए-क़िस्मत से हमेशा 'फ़ितरत'
बख़्त बेदार रहा ख़्वाबों में