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क्या कहें पूछ मत कहीं हैं हम | शाही शायरी
kya kahen puchh mat kahin hain hum

ग़ज़ल

क्या कहें पूछ मत कहीं हैं हम

मीर हसन

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क्या कहें पूछ मत कहीं हैं हम
तू जहाँ है ग़रज़ वहीं हैं हम

क्या कहें अपना हम नशेब-ओ-फ़राज़
आसमाँ गाह गह ज़मीं हैं हम

वहम में अपने थे बहुत कुछ लेक
ख़ूब देखा तो कुछ नहीं हैं हम

हम को नाकारा जान मत ले ले
तेरे ही नाम के नगीं हैं हम

मैं जो पूछा कहाँ हो तुम तो कहा
तुझ को क्या काम है कहीं हैं हम

अपने उक़दे किसी तरह न खुले
किस दिल-आज़ार की जबीं हैं हम

हम न तीर-ए-शहाब हैं न सुमूम
नाला-ओ-आह-ए-आतिशीं हैं हम

बूद-ओ-नाबूद में ग़रज़ अपने
जिस तरह से कि हम-नशीं हैं हम

क्या कहें पूछ मत ब-क़ौल 'ज़िया'
एक दम हैं सो वापसीं हैं हम