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क्या कहें महफ़िल से तेरी क्या उठा कर ले गए | शाही शायरी
kya kahen mahfil se teri kya uTha kar le gae

ग़ज़ल

क्या कहें महफ़िल से तेरी क्या उठा कर ले गए

मसूदा हयात

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क्या कहें महफ़िल से तेरी क्या उठा कर ले गए
हम मता-ए-दर्द को तन्हा उठा कर ले गए

धूप का सहरा नज़र आता है अब चारों तरफ़
आप तो हर पेड़ का साया उठा कर ले गए

अब वही ज़र्रे हमारे हाल पर हैं ख़ंदा-ज़न
आसमाँ तक जिन को हम ऊँचा उठा कर ले गए

क्या ग़रज़ हम को वहाँ अब कोई भी आबाद हो
हम तो उस बस्ती से घर अपना उठा कर ले गए

वो तो मजनूँ था रहा जो उम्र भर सहरा-नवर्द
हम जहाँ पहुँचे वहीं सहरा उठा कर ले गए

कर न पाए राहबर भी रहनुमाई जब 'हयात'
हम भी हैरानी में नक़्श-ए-पा उठा कर ले गए