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क्या हुआ हुस्न है हम-सफ़र या नहीं | शाही शायरी
kya hua husn hai ham-safar ya nahin

ग़ज़ल

क्या हुआ हुस्न है हम-सफ़र या नहीं

ख़ुमार बाराबंकवी

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क्या हुआ हुस्न है हम-सफ़र या नहीं
इश्क़ मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं

दो परिंदे उड़े आँख नम हो गई
आज समझा कि मैं तुझ को भूला नहीं

तर्क-ए-मय को अभी दिन ही कितने हुए
कुछ कहा मय को ज़ाहिद तो अच्छा नहीं

हर नज़र मेरी बन जाती ज़ंजीर-ए-पा
उस ने जाते हुए मुड़ के देखा नहीं

छोड़ भी दे मिरा साथ ऐ ज़िंदगी
मुझ को तुझ से नदामत है शिकवा नहीं

तू ने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'
तुझ को रहमत पे शायद भरोसा नहीं