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क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई | शाही शायरी
kya ho gaya kaisi rut palTi mera chain gaya meri nind gai

ग़ज़ल

क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई

फ़रीद जावेद

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क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई
खुलती ही नहीं अब दिल की कली मिरा चैन गया मिरी नींद गई

मैं लाख रहूँ यूँही ख़ाक-बसर शादाब रहें तिरे शाम-ओ-सहर
नहीं उस का मुझे शिकवा भी कोई मिरा चैन गया मिरी नींद गई

मैं कब से हूँ आस लगाए हुए इक शम-ए-उमीद जलाए हुए
कोई लम्हा सुकूँ का मिले तो सही मिरा चैन गया मिरी नींद गई

'जावेद' कभी मैं शादाँ था मिरे साथ तरब का तूफ़ाँ था
फिर ज़िंदगी मुझ से रूठ गई मिरा चैन गया मिरी नींद गई