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क्या हिज्र में जी निढाल करना | शाही शायरी
kya hijr mein ji niDhaal karna

ग़ज़ल

क्या हिज्र में जी निढाल करना

वाली आसी

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क्या हिज्र में जी निढाल करना
कुछ ज़िक्र-ए-शब-ए-विसाल करना

जो कुछ भी गुज़र रही है सह लो
कुछ उस से न अर्ज़-ए-हाल करना

ग़म उस के अता किए हुए हैं
ग़म का न कभी मलाल करना

मैं तुम से बिछड़ के जी सकूँगा
ऐसा न कभी ख़याल करना

जिस तरह जिए हैं हम जहाँ में
पेश ऐसी कोई मिसाल करना

मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
ऐसा भी कोई सवाल करना

तुम साथ रहे तो हम ने 'वाली'
सीखा ही नहीं कमाल करना