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क्या है ऊँचाई मोहब्बत की बताते जाओ | शाही शायरी
kya hai unchai mohabbat ki batate jao

ग़ज़ल

क्या है ऊँचाई मोहब्बत की बताते जाओ

अातिश इंदौरी

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क्या है ऊँचाई मोहब्बत की बताते जाओ
पंछियों उड़ के यूँ ही ख़्वाब दिखाते जाओ

पेड़ पत्थर का जवाब आज भी देते फल से
चोट खाओ भले पर रिश्ते निभाते जाओ

यूँ भी पैग़ाम मोहब्बत का पहुँच जाएगा
साथ इंसाँ के परिंदों को बसाते जाओ

शहर में काम बहुत सारे समय लेकिन कम
मत करो बात मगर हाथ हिलाते जाओ

इक दो मत-भेद तो हर घर में हुआ करते हैं
इन को नेता जी हवा मत दो बुझाते जाओ

गाँव में नाव थी काग़ज़ की सफ़र आसाँ था
इक मुसाफ़िर हूँ यहाँ राह दिखाते जाओ

गालियाँ ऐसे ही दो मुझ को हमेशा 'आतिश'
ग़लतियाँ मेरी इसी तरह बताते जाओ