क्या ढूँडने आए हो नज़र में
देखा है तुम्हीं को उम्र-भर में
मेयार-ए-जमाल-ओ-रंग-ओ-बू थे
वो जब तक रहे मेरी चश्म-ए-तर में
अब ख़्वाब-ओ-ख़याल बन गए हो
अब दिल में रहो, रहो नज़र में
वो रंग तुम्हारे काम आया
उड़ता है जो ग़म की दोपहर में
हाए ये तवील ओ सर्द रातें
और एक हयात-ए-मुख़्तसर में
अब सूरत-ए-हाल बन गया हूँ
मिलता हूँ निगाह-ए-चारागर में
या और सितारे और शबनम
या मर रहें दामन-ए-सहर में
या मंज़िल-ए-महर-ओ-माह भी है
या राह-ए-फ़रार है सफ़र में
वो भी तो 'ज़फ़र' से ख़ुश नहीं हैं
रहते हैं जो दीदा-ए-'ज़फ़र' में
ग़ज़ल
क्या ढूँडने आए हो नज़र में
यूसुफ़ ज़फ़र