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क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में | शाही शायरी
kya dekhte hain aap jhijak kar sharab mein

ग़ज़ल

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

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क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में
पैदा है अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-मोअम्बर शराब में

परतव-फ़गन है चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर शराब में
क्या मिल गया है फ़ित्ना-ए-महशर शराब में

बद-मस्तियों के शौक़ ने तूफ़ाँ उठाए हैं
बैठे हैं हम बहाए हुए घर शराब में

तर-दामनों को आतिश-ए-दोज़ख़ से है नजात
जामा है शोर-बोर सरासर शराब में

बे-यार मौज-ए-मय है रग-ए-जाँ में नेश्तर
ये जाँ-सतानियाँ हैं मुक़र्रर शराब में

कुछ क़त्ल में भी चाशनी-ए-मय ज़रूर है
क़ातिल बुझा के लाइयो ख़ंजर शराब में

शीरीं-कलामियाँ हैं वहाँ वक़्त-ए-मय-कशी
गोया मिला है क़ंद-ए-मुकर्रर शराब में

कहता है रंग-ए-रुख़ से तिरे जौहर-ए-शराब
खिलते हैं हुस्न-ए-शोख़ के जौहर शराब में

महरूम बज़्म-ए-मय से न फिर जाए मोहतसिब
दे दो कोई कबाब डुबो कर शराब में

'रौनक़' ने उन के हाथ से बज़्म-ए-रक़ीब में
इक ख़ून-ए-दिल पिया है मिला कर शराब में