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क्या देखता है हाल के मंज़र इधर भी देख | शाही शायरी
kya dekhta hai haal ke manzar idhar bhi dekh

ग़ज़ल

क्या देखता है हाल के मंज़र इधर भी देख

सय्यदा शान-ए-मेराज

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क्या देखता है हाल के मंज़र इधर भी देख
माज़ी के नक़्श याद की दीवार पर भी देख

देखे हैं मेरे ऐब तो मेरा हुनर भी देख
सौदा है जिस में अपना अना का वो सर भी देख

ले काम मुझ से सख़्त उड़ानों का तू मगर
पहले मिरी निगाह मिरे बाल-ओ-पर भी देख

चेहरे के रंग-ओ-नूर को मेरा हुनर समझ
मुझ को मिरी नज़र से कभी झाँक कर भी देख

इक बार और बच के ज़माने की आँख से
हूँ देखने की चीज़ तो बार-ए-दिगर भी देख